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भागलपुर कला केंद्र में गुरुकुल परंपरा और संस्कृति की भावना को सहेजे हुए हैं ‘गुरुजी’

Kaushmika, भागलपुर

गुरुजी, जैसा कि भागलपुर के लोग उन्हें प्यार से बुलाते हैं, जिनकी चाक द्वारा स्वनिर्मित कला “अंदाज़ सेली” से मैंने तब एक अलौकिक जुड़ाव महसूस किया जब मैंने उनकी कला एवं कला केंद्र के बारे में उत्सुकता से पूछताछ की। उनकी कला के प्रति उनकी शुद्धता, सरलता उनके अस्तित्व और उनकी आत्मीयता को देखकर उनके जीवन के बारे में जानने की मेरी जिज्ञासा को बढ़ती चली गई।

गुरुजी, रामलखन सिंह, भागलपुर में किसान परिवार में जन्मे और पले-बढ़े। गुरु जी ने कला के लिए अगाध प्रेम रखते हुए तिलकामांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर से ललित कला का अध्ययन किया। तत्पश्चात चंडीगढ़ विश्विविद्यालय से ललितकला में ही स्नातकोत्तर की पढ़ाई जारी रखी। बाद में वे कला केंद्र, भागलपुर में एक शिक्षक के रूप में पदस्थ हुए और वर्तमान इसके प्राचार्य के रूप में सेवाएं दे रहे हैं।

अपने परिवार से अलग रहते हुए कला केंद्र में गुरु जी का जीवन उनकी कला एवं नवीन कलाकारों की कला से सुसज्जित एक छोटे से कमरे में घूमता है।

विनम्र व्यक्तित्व के धनी गुरुजी हमेशा अपने छात्रों को पढ़ाते वक़्त हैं जेब में चाक का ढेर और अधरों पर एक हर्षित मुस्कान रखते हैं।

मैंने जब उनसे उनकी पेंटिंग और कला के बारे में पूछना शुरू किया तो उन्होंने उसी लॉबी की फर्श पर जहां हैं खड़े थे स्केच बनाकर मुझे समझाना शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था मानो वह अपना सारा ज्ञान मुझ पर उड़ेल रहे हों।

गुरु जी के ही एक छात्र मिथिलेश ने मुझे बताया कि उनका यह विनम्र रवैया सिर्फ़ मेरे या उनके छात्रों के साथ नहीं वरन हर उस व्यक्ति के साथ था जो उनसे मिलने आता है, वे किसी भी व्यक्ति को बग़ैर अपने बनाये स्केच के खाली हाथ नहीं भेजते।

वह आज भी कला केंद्र में गुरुकुल परंपरा और संस्कृति की भावना को सहेजे हुए हैं। जिसे उनके पढ़ाने के तरीके और छात्रों के साथ उनका रिश्ते से बख़ूबी समझा जा सकता है।

पेंटिंग की अजंता शैली में निपुणता और मूर्तिकला कला में प्रवीणता के साथ, उन्होंने अनेकों चित्रकारी की हैं। उन्होंने 300 से अधिक पेंटिंग बनाई है और साथ ही भागलपुर में तिलका मांझी की प्रसिद्ध प्रतिमा को तराश कर बनाया है। भागलपुर विश्वविद्यालय में लगाई गई महात्मा गांधी की प्रतिमाएं, कला केंद्र में स्थित रवींद्र नाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद जी और नंदलाल बोस की प्रतिमाएं उनके हाथों से ही तराशी गईं हैं। उनके काम में केंद्र की दीवारों पर बनाए हुए भित्ति चित्र भी शामिल हैं, जिनमें से एक को मैं चित्रित कर रही हूं, “जवाहर लाल नेहरू का बच्चों के प्रति प्रेम।”

उन्होंने पेंटिंग की नई तकनीक ईजाद की जिसे वे ‘अंदाज़ शैली’ कहते हैं, जो कि शून्य का प्रतीक है, वह “कला केंद्र” के युवा कलाकारों को पढ़ाने के लिए अपनी पेंटिंग की शैली का उपयोग करते हैं। मेरे कारण पूछने पर उन्होंने मुझे इसकी व्याख्या समझाई; जिस तरह शून्य जो शून्य से शुरू होता है अनंत तक जाता है, प्रत्येक बच्चा भी कुछ नहीं से अनंत ज्ञान तक पहुंचता है। बिहार एवं राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त और सम्मानित होने के बावजूद, विनम्र गुरु जी का सपना है कि कला केंद्र को एक पेशेवर कला संस्थान के रूप में स्थापित किया जा सके, ताकि किसी भी राज्य का प्रत्येक व्यक्ति एक कलाकार बनने के सपने को पीछे न छोड़े।

लेख में ऊपर पोस्ट किए गए उनके चित्रों के अलावा, नीचे गुरु जी द्वारा निर्मिर और भी पेंटिंग और मूर्तियां हैं। गुरुजी, जिसे हम व्यक्तिगत रूप से प्यार करते हैं और आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं।

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