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निजी विद्यालयों की लूट और मनमानी पर लगाम लगाना जरूरी: सुरेन्द्र कुमार

संजय भारती , समस्तीपुर।

 

समस्तीपुर : मानव जीवन में समुचित शिक्षा प्राप्त व्यक्ति हीं खुद बेहतर जीवन जीनें के साथ अपनें परिवार, समाज, राष्ट्र और अंततोगत्वा मानवता को अधिक उत्पादक प्रगतिशील और विकासोन्मुख बना सकता है ।

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इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक को समान रूप से शिक्षा प्रदान करना अपना कर्तव्य समझते हुए सरकार नें शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 पारित किया । इस अधिनियम के मुताबिक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग तक के प्रत्येक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है । यदि इस अधिकार की प्राप्ति में कोई बाधा पहुंचती है तो इसके लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है । लेकिन बाजारोन्मुख पूंजीवाद नें शिक्षा की सरकारी व्यवस्था को धीरे – धीरे ध्वस्त कर के समानांतर एवं अधिक मजबूत निजी शिक्षा व्यवस्था खड़ी कर दी है । आज शिक्षा की पूरी व्यवस्था इस मुकाम पर पहुंच गई है कि सरकारी विद्यालय मुफ्त भोजन , वस्त्र , साइकिल आदि के वितरण केंद्र बनकर रह गए हैं । अपनें बच्चे को थोड़ी भी अच्छी शिक्षा दिलवाने के इच्छुक अभिभावकों के पास निजी विद्यालयों में अपनें बच्चों को भेजने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है । ये निजी विद्यालय शिक्षा प्राप्ति की जनाकांक्षा का दोहन करते हुए लूट खसोट और अंतहीन मुनाफा कमाने की नीति पर चल रहे हैं । कमर तोड़ देने वाले मासिक शिक्षण शुल्क के साथ हीं भारी नामांकन शुल्क , वार्षिक शुल्क , परीक्षा शुल्क , विकास शुल्क , वाहन शुल्क तथा समय-समय पर अनेक प्रकार के शुल्क वसूल वसूल कर लोगों को तंग और तबाह करके खुद शान-ओ-शौकत की जिंदगी बसर करना इन विद्यालयों के मालिकों का इकलौता उद्देश्य बनकर रह गया है । इतना हीं नहीं यह विद्यालय शिक्षा के बिक्री केंद्र के साथ हीं वस्तु विक्रय केन्द्र के रूप में भी धंधा करते हैं । इन विद्यालयों नें पोशाक, टाई, बेल्ट, डायरी, कॉपी, कलम के साथ हीं निजी प्रकाशकों की हर साल बदली जाने वाली किताबों को अपनें यहां से या निश्चित दुकान से हीं खरीदने के लिए विवश कर के शिक्षा के मंदिर को परचून की दुकान से भी बदतर बना दिया है । इन विद्यालयों को मान्यता देने वाली संस्था सीबीएसई का स्पष्ट निर्देश है कि नामांकन में कोई कैपिटेशन फीस या डोनेशन नहीं लिया जाएगा और अन्य शुल्क भी सरकार के द्वारा निर्धारित मानकों के अंतर्गत लिए जाएंगे। (CBSE Affiliation Byelaws. 11.1.1 page 17) CBSE का यह भी स्पष्ट निर्देश है कि विद्यालय NCERT, CBSE की पुस्तकों को छोड़कर अन्य प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने के लिए छात्रों पर जोर नहीं दे सकते हैं और ना हीं छात्रों को विद्यालय से या चिन्हित दुकानों से पुस्तकें या अन्य सामान खरीदने के लिए विवश कर सकते हैं । यह निजी विद्यालयों बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का भी खुलेआम उपेक्षा करते हैं । शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 निजी विद्यालयों में 25% पड़ोस के छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करनें की व्यवस्था देता है । परंतु यह विद्यालय संवैधानिक अधिकारों की भी धज्जियां उड़ाते हुए या तो पड़ोस के 25% छात्रों का नामांकन लेते हीं नहीं है या यदि नामांकन लेते हैं भी तो उनके साथ भेदभाव का रवैया अपनातें हैं । इस तरह ये निजी विद्यालय संवैधानिक व्यवस्था और प्रशासनिक निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए मेहनतकश आवाम को लूटने में निर्विध्न रूप से निमग्न हैं । ऐसी स्थिति में हम सरकार प्रशासन और निजी विद्यालयों से यह मांग करते हैं कि : –

1. प्रत्येक निजी विद्यालयों में पड़ोस के 25% बच्चों को मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित की जाए ।

2. नामांकन शुल्क वार्षिक शुल्क एवं अन्य शुल्क के नाम पर खुली लूट बंद करके सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अंतर्गत उचित शुल्क लिया जाए ।

3. सारी कक्षाओं में NCERT की पाठ्यपुस्तकों से पढ़ाई को सुनिश्चित किया जाए। निजी प्रकाशकों की पुस्तकों से पढ़ाई पर पूर्णतया रोक लगाई जाए ।

4. विद्यालयों के द्वारा अपनें हीं परिसर में दुकान चलाने या निर्धारित दुकान से पुस्तक आदि खरीदने का निर्देश देना अपराध माना जाए ।

सुरेन्द्र कुमार ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि इस मांग को मजबूत करने में हमें आपकी जरूरत है । आइए, इस मांग में शामिल होकर शोषण मुक्त शिक्षित समाज की रचना में सहयोग कीजिए ।

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