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आम के फूल के झुलसने की बीमारी को कैसे करें प्रबंधित..

बिहार दूत न्यूज।

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लगभग 140 से अधिक रोगजनक आम फसल उत्पादन के विभिन्न चरणों में नुकसान पहुंचाते है। जिस समय आम के फूल में रोग लग जाते है तो आम की उपज में भारी कमी आती हैं।

आम के फूल( पुष्पक्रम) में ब्लॉसम ब्लाइट और पेडुनकल ब्लाइट कवक कोलेटोट्रिचम ग्लोस्पोरियोइड्स नामक कवक द्वारा होता है। यह रोग उस समय अधिक होता है जब पुष्पन के समय मौसम में नमी अधिक होती है ।जब वातावरण में अधिक नमी होती है उस समय यह रोगकाराक आम के फूलों ( पुष्पगुच्छों) को नष्ट कर देता है। पुष्पगुच्छों और खिले हुए फूलों पर छोटे छोटे धब्बे या पिन चुभने वाले धब्बे के रूप में लक्षण दिखाई देते हैं जिससे फूल मर जाते हैं एवम मृत फूल काले हो जाते हैं। बौर इस बीमारी का सबसे विनाशकारी चरण है, क्योंकि यह फलों के सेट और अंततः उपज को प्रभावित करता है। संक्रमित फूल झड़ जाते हैं, मंजर के डंठल भी इस रोगकारक की वजह से आक्रांत होते हैं। मौसम के अनुसार रोग की गंभीरता भिन्न हो सकती है। कभी-कभी पुष्पगुच्छ संक्रमण से बच जाते हैं लेकिन फल रोग से गंभीर रूप से आक्रांत हो सकते हैं। यह रोगकारक़ परिपक्व फलों के पकने के दौरान और बाद में भी आक्रांत कर सकता हैं। संवेदनशील किस्मों पर, कटाई से पहले फल संक्रमित हो सकते हैं और पेड़ से गिर सकते हैं। मृत धब्बे आमतौर पर आपस में मिल जाते हैं और व्यापक फल क्षय, दरार और रिसाव का कारण बनते हैं। ज्यादातर हरे फलों के संक्रमण कटाई के दौरान निष्क्रिय रहते हैं और पकने तक काफी हद तक अदृश्य रहते हैं। यह रोगज़नक़ केंद्र में शॉट होल लक्षण छोड़कर अंडाकार या कोणीय भूरे रंग के धब्बे पैदा करके उभरते हुए नए पत्ते को भी प्रभावित करता है। इस रोग का रोगकारक आम के फूल (मंजर),मंजर के डंठल,फल एवम कोमल पत्तियों को प्रभावित करने की छमता रखते है।इसलिए आवश्यक है की जब इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई दे उसी समय इस रोग को प्रबंधित करके इस रोग से होने वाले भारी नुकसान से बचा जा सकता है।

आम के फूल (मंजर)के झुलसने
की बीमारी को कैसे करें प्रबंधित?

इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की रासायनिक उपायों के साथ कल्चरल विधि को अपनाकर इस रोग को बहुत प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। रोगग्रस्त पत्तियों, टहनियों, कलियों और फलों को इकट्ठा करके जला देना चाहिए ताकि खेत में निवेशद्रव्य कम हो सके। पंद्रह दिनों के अंतराल पर कार्बेंडाजिम की 1 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से फूल के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। इस रोग के प्रति अतिसंवेदनशील किस्मों पर कवकनाशी का प्रयोग का समय और आवृत्ति बहुत महत्वपूर्ण होती है और छिड़काव मंजर आने से पूर्व तथा फल के मटर के बराबर होने पर करना चाहिए। थियोफनेट मिथाइल या कार्बेंडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर या हेक्साकोनाज़ोल 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोलकर मंजर आने के पूर्व एवम आखिरी छिड़काव फल तुड़ाई से 15 दिन पहले समाप्त हो जाना चाहिए। आम उत्पादकों को फूल आने और फल लगने की अवस्था के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है ताकि वे अपनी फसल को इस घातक बौर झुलसा रोग से बचा सकें। आम उत्पादक किसानों की सक्रियता , स्वच्छ खेती के तरीके और उपयुक्त कवकनाशी का समय पर आवश्यकता के आधार पर उपयोग आम के इस घातक बीमारी को कम करने में बहुत ही सहायक होता है।

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