संजय भारती , समस्तीपुर।
समस्तीपुर : जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र, चाइल्ड राइट्स एंड यू, जन स्वास्थ्य अभियान और आर्थिक अनुसंधान केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में सरायरंजन प्रखंड के अख्तियारपुर कार्यालय सभागार में आयोजित पोषण उन्मुखीकरण कार्यशाला में जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के संस्थापक सचिव सुरेन्द्र कुमार नें कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी प्रयासों के साथ बेहतर सामुदायिक प्रबंधन से समुदाय के अति कुपोषित बच्चों को समेकित लाभ पहुंचाना संभव है और तभी हम उन बच्चों के बचपन में खुशिहाली ला सकतें हैं । मौका था बच्चों के कुपोषण से मुक्ति के लिए जन जागरूकता और सामुदायिक उन्मुखीकरण कार्यशाला का । अध्यक्षता गौरीशंकर चौरसिया एवं संचालन ललिता कुमारी नें किया । असंगठित खेतिहर मजदूर पंचायत के संयोजक रविन्द्र पासवान नें बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार राज्य के 42.9 प्रतिशत बच्चे नाटापन से ग्रसित हैं जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 4 में नाटापन का प्रतिशत 48.3 प्रतिशत था । मौके पर दिनेश प्रसाद चौरसिया, नवनीत कुमार, वीणा कुमारी, कौशल कुमार जैसे सामुदायिक सामाजिक विकास के लिए प्रतिबद्ध विद्वान वक्ताओं नें कहा कि समुदाय स्तर पर जरुरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत जरुरी है । कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन की सपोर्ट पर्सन दीप्ति कुमारी नें बताया कि अति कुपोषण एवं प्रारंभिक विकास के लिए बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है । इसलिए भी अति – कुपोषित बच्चों को सुपोषित करना आवश्यक है और एक बड़ी चुनौति के साथ हम सभी की जिम्मेदारी भी है । जिसमें समुदाय स्तर पर अति-कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने का प्रयास एक प्रभावी पहल है । जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र की अकाउंटेंट श्वेता कुमारी नें कहा कि बच्चों में कुपोषण उनकी शारीरिक एवं मानसिक दक्षता में कमी करने के साथ देश के विकास में भी बाधक साबित होती है । कम्यूटिनी दि यूथ कलेक्टिव, नई दिल्ली की समन्वयक काजल राज नें बताया कि अति-कुपोषित बच्चों को सुपोषित करनें की दिशा में पोषण पुनर्वास केंद्र की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता । लेकिन सभी अति-कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालनें में सिर्फ पोषण पुनर्वास केंद्र पर्याप्त नहीं है, इसके लिए समुदाय स्तर पर अति-कुपोषित बच्चों की पहचान एवं इनके बेहतर प्रबंधन पर ध्यान देने की अधिक जरूरत है । पैरवी, नई दिल्ली की फैसिलिटेटर वीभा कुमारी नें कहा कि समुदाय स्तर पर जरुरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना उतना हीं जरुरी है, जितना जीवन जीने के लिए भोजन । सीनियर रिसर्च कंसल्टेंट बलराम चौरसिया नें बताया कि कुपोषण को दूर करने में आहार विविधिता को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है । लेकिन सामाजिक विकास के क्रम में आहार विविधिता को नजरंदाज किया जाता रहा है । लेकिन अब फिर से श्रीअन्न यानी मोटे आनाज की उपयोगिता बढ़ाकर कुपोषण दूर करने पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है । कार्यकारिणी समिति सदस्य रामप्रित चौरसिया नें बताया कि समुदाय स्तर पर सुपोषण को बढ़ावा देने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर जरुरी दवाओं जैसे आईएफए, विटामिन ए सिरप आदि की पूर्व आपूर्ति सुनिश्चित करने में स्वास्थ्य विभाग को आगे आकर मदद करना चाहिए। इससे सही समय पर लाभुकों के लिए दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी एवं इससे कुपोषण को दूर करने में सहूलियत भी होगी। रोटरी इंडिया लिटरेसी मिशन के एडल्ट लिटरेसी कार्यक्रम की फैसिलिटेटर किरण कुमारी नें बताया कि कुपोषण से बढ़ता है परिवार पर आर्थिक बोझ । अति गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चों के कारण परिवार पर आर्थिक बोझ पड़ता है । बच्चों के उपचार के लिए उसके अभिभावक को खर्च करना पड़ता है । इसलिए जरुरी है कि सामुदायिक स्तर पर जागरूकता फैलाई जाये । स्थानीय ग्रामीण चिकित्सक डॉ. रामसूरत दास, डॉ.अरुण कुमार गिरि नें बताया कि अति गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चा आगे चलकर कई बिमारियों से ग्रसित हो जातें हैं और शिशु मृत्यु का यह एक प्रमुख कारण है । डॉ. उमेश कुमार राय नें कहा कि बच्चों को अति कुपोषित श्रेणी में जाने से पहले बचाना जरुरी है । संस्था के संस्थापक अध्यक्ष गौरीशंकर चौरसिया नें अपनें संबोधन में बताया कि बच्चों को कुपोषण से बचाना जरुरी है। इसके लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में नियमित रूप से क्षमतावर्धन किया जाना चाहिए । हमें प्रयास करना है कि बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करने की जरुरत हीं नहीं पड़े । इसके लिए हमें समुदाय में पोषण की महत्ता के संदेश को हर स्तर पर प्रसारित करने की जरुरत है । कार्यशाला में चाइल्ड लाइन समस्तीपुर सब सेंटर शाहपुर पटोरी की टीम मेम्बर अंजु कुमारी नें बताया कि स्वास्थ्य एवं पोषण की सेवाओं को एक साथ अति गंभीर कुपोषित बच्चे तक पहुंचाने की जरुरत है । आंगनवाड़ी केंद्रों पर वृद्धि निगरानी के साथ बच्चे की माताओं को बताया जाये ताकि वह भी अपने बच्चे की पोषण संबंधी समस्याओं से एकाकार हो सके । प्रैक्सिस, नई दिल्ली की फैसिलिटेटर ललिता कुमारी नें बताया कि बच्चे के मष्तिष्क का 80 फीसदी विकास उसके जीवन के पहले तीन वर्षों में होता है इसलिए जरुरी है गर्भवती माता के संपूर्ण पोषण एवं नवजात के लिए पहले 6 माह तक सिर्फ स्तनपान की महत्ता को समझाया जाए। आज के कार्यशाला की मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता – सह- पोषण विशेषज्ञ मनीषा कुमारी नें बताया कि राज्य में प्रचुर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के बावजूद कुपोषण मौजूद है । इसलिए यह जरुरी है कि उपलब्ध खाने की वस्तुओं में छुपी हुई पोषण के खजाने को पहचान कर उसे नियमित खान पान में शामिल किया जाये ।