समस्तीपुर : मजदूर दिवस 1 मई को विश्वभर में मनाया जाता है। जिसको लेकर पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता निरंजन कुमार कहते हैं कि मजदूर दिवस एक अंतरराष्ट्रीय पर्व है जो मजदूरों के अधिकारों को समर्थन और महत्व देने के लिए स्थापित किया गया है। मजदूर दिवस का आयोजन पहली बार 1 मई, 1886 को हुआ था। भारत में मजदूर दिवस का पहला आयोजन 1 मई, 1923 को हुआ था। इस दिन को विश्वभर में मजदूरों के अधिकारों की समर्थन और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। 1886 में 1 मई को ही अमेरिका के शिकागो शहर में हजारों मजदूरों ने एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया था। उनकी मांग थी कि मजदूरी का समय 8 घंटे निर्धारित किया जाए और हफ्ते में एक दिन छुट्टी हो। इससे पहले मजदूरों के लिए कोई समय-सीमा नहीं थी। उनके लिए कोई नियम-कायदे ही नहीं होते थे। लगातार 15-15 घंटे काम लिया जाता था। आज से करीब 138 साल पहले शिकागो का यह प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने 4 मई को पुलिस को निशाना बनाकर बम फेंका। पुलिस की जवाबी फायरिंग में 4 मजदूरों की मौत हो गई और करीब 100 मजदूर घायल हो गए। इसके बाद भी आंदोलन चलता रहा। 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो 1 मई को मजदूरों को समर्पित करने का फैसला किया। इस तरह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। यह आंदोलन अंततः 8 घंटे की कामकाजी समयशृंखला के अंतर्गत होने वाले मजदूरों की हत्या के बाद हिस्सेदार हुआ, और यह दिन अंततः मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। मजदूरों का योगदान समाज की आधारशिला होता है। वे उन लोगों में से हैं जो दिन-रात मेहनत करके अपने परिवार को पालने और समृद्धि में मदद करने में लगे होते हैं। उनका योगदान सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं होता, बल्कि समाज के उत्थान और विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मजदूरों का योगदान समाज के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देता है। उन्हें निर्माण, कृषि, उद्योग, और सेवा क्षेत्रों में देखा जा सकता है, जहां उनके प्रयास और मेहनत से ही समाज का विकास संभव होता है। वे नए इंफ्रास्ट्रक्चर की रखरखाव, उत्पादन की प्रक्रिया, और लोगों की सेवा में अपना योगदान देते हैं। मजदूरों का योगदान समाज के अर्थव्यवस्था में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके मेहनती प्रयासों से ही उत्पादन और उत्थान संभव होता है। वे न केवल अपने परिवार को पालते हैं, बल्कि अपने योगदान से समाज को भी स्थिरता और आर्थिक वृद्धि की दिशा में मदद करते हैं। हालांकि, मजदूरों का योगदान महत्वपूर्ण होता है, लेकिन वे अक्सर अपने अधिकारों के अभाव में अन्याय का शिकार होते हैं। उन्हें कम वेतन, असुरक्षित काम की शर्तें, और अन्य सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बाल श्रम, मजदूरों की सुरक्षा की कमी, और अन्य सामाजिक और आर्थिक समस्याएं उनका जीवन कठिन बना देती हैं। मजदूरों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कानून और समझौते हैं जो उनके अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। यहाँ कुछ मुख्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनों का उल्लेख है:- अंतरराष्ट्रीय कार्य संगठन के कानून: अंतरराष्ट्रीय कार्य संगठन के द्वारा कई कानून और समझौते बनाए गए हैं जो मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हैं। इसमें कामकाजी स्थितियों, मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य, और श्रम संबंधी न्याय के मामले शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार: कई अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संधियों और समझौतों में मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है। इनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यावसायिक संगठन की स्वतंत्रता, और शोषण के खिलाफ लड़ाई की मुख्य बातें शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक निर्माण: कई विशेष अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक निर्माण अनुसंधानों, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में श्रमिकों की सुरक्षा और कल्याण की देखरेख करते हैं। विश्व व्यावसायिक निर्माण संगठन: यह संगठन भी मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए काम करता है और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को अमल में लाने में सहायक होता है। भारतीय संविधान में मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई धाराएं और निर्देश शामिल हैं। यहाँ कुछ मुख्य धाराएं और अनुच्छेदों का उल्लेख है:- अनुच्छेद 14 में समान अवसरों की व्यवस्था, समानता, और निष्पक्षता की बात की गई है, जिससे मजदूरों को अधिकारों की सुरक्षा मिले। अनुच्छेद 23 में श्रमिकों के बच्चों के खिलाफ श्रम के प्रति प्रतिबंध लगाने की बात की गई है, जिससे बालश्रम को रोका जा सके।अनुच्छेद 24 में निर्माण, उद्योग, और किसी अन्य व्यवसाय के कार्यालय में कर्मचारियों के लिए उचित वेतन और अन्य सुविधाओं की बात की गई है। अनुच्छेद 39 में निर्माण, उद्योग, और अन्य संगठनों में काम करने वाले लोगों के लिए उचित वेतन, स्वस्थ्य, और श्रम से संबंधित सुविधाएं प्रदान करने की बात की गई है। अनुच्छेद 41में श्रमिकों को आधारिक जीवन के लिए उचित विकास और सुविधाएं प्रदान करने के लिए संचालन द्वारा निर्धारित प्रयास की बात की गई है। भारत में मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानून हैं, जैसे – कामगारों के विरुद्ध अत्याचार निवारण अधिनियम, 2013, मजदूरी कानून, 1926, मजदूरों के लिए पेशेवरी के विपरीत लाभ अधिनियम, 1976, मजदूरों के लिए एकीकरण कानून, 1979, श्रम संगठन और योगदान अधिनियम, 1958, मजदूरों के वेतन अधिनियम, 1936 । मजदूरों का योगदान समाज के लिए अभूतपूर्व महत्व रखता है। उनके बिना, कोई भी समाज समृद्ध और समर्थ नहीं हो सकता। वे समाज का आधार होते हैं, और उन्हें सम्मान और समर्थन की आवश्यकता है। हमें उनके सम्मान और समर्थन का अभाव दूर करना चाहिए, और उनके अधिकारों की सुरक्षा के करनी चाहिए।