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सरकार मंत्री पद समाप्त कर मछुआ समितियों में प्रबंधक बहाल करना चाहती है, यह मछुआ विरोधी कदम है: संघ

पटना, बिहार दूत न्यूज।
राष्ट्रीय व बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ लि0 (कॉफ्फेड), पटना के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप एवं संघ के अध्यक्ष सकलदेव सहनी ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रखंड
मत्स्यजीवी सहयोग समितियों में प्रबंधक की कोई जरूरत नही है। सरकार मंत्री पद समाप्त कर मछुआ समितियों में प्रबंधक बहाल करना चाहती है, यह मछुआ विरोधी कदम है।

बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ सरकार के इस साज़िश का विरोध करेगा। संघ के नेताओं ने कहा की पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की 15 मार्च 2022 की बैठक में निर्णय लिया था कि मछुआ समितियों में मंत्री पद समाप्त किया जाए एवं इसे मछुआरों के हाथ से छीन कर इसके स्थान पर सरकारी प्रबंधक की नियुक्ति की जाए।
मालूम हो की प्रबंधक किसी भी जाति का हो सकता है। वह सिर्फ मछुआरा समाज का नहीं होगा। इसलिए सहकारिता एवं मत्स्य विभाग की सहमति से 16 मार्च 2022 को पत्र भी निर्गत किया गया है।
ऐसे में राज्य के सभी मछुआ समितियों के मंत्रियों से अनुरोध है कि आपसी मतभेंदों को भुलाकर एकजुट हो। ताकि सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय का विरोध किया जा सके। सरकार की मनसा स्पष्ट है कि वह मछुआ समिति को समाप्त करना चाहती है। अब नहीं जागने से आपकी समिति पर सरकार का कब्जा हो जाएगा और गैर मछुआरे जलकरो पर काबिज हो जाएंगे। इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि शीघ्र सचेत हो एवं आंदोलन के लिए तैयार रहे। वर्तमान में राज्य के पशु एवं मत्स्य संसाधन एवं सहकारिता विभाग प्रखण्ड स्तरीय मछुआ समितियों के लिए सदस्यता अभियान चला रहा है।
ऐसे में बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ की मांग है कि सरकार द्वारा सदस्यता अभियान शुरू करने से पहले परंपरागत मछुआरों की सूची जारी की जाए। इस तरह की मांग संगठन की ओर से पहले भी किया जाता रहा है लेकिन मत्स्य एवं सहकारिता विभाग टाल-मटोल करता रहा है। अब सदस्यता अभियान को लेकर मछुआरों में काफी भय व्याप्त हो गया है कि कहीं उनकी सदस्यता को ही न समाप्त कर दिया जाए। पूर्व के वर्षों में देखा गया है कि परंपरागत मछुआरों की सूची में गैर मछुआ जाति के सदस्यों को शामिल किया गया है। राज्य के कई मछुआ समितियों में तो गैर मछुआरों की सदस्यता 50ः से भी ज्यादा हो गई है। ऐसे में संघ सरकार से आग्रह करता है कि बिना परंपरागत मछुआरों की सूची जारी किए आनलाईन सदस्यता अभियान न चलाया जाए। मछुआ समितियों में केवल परंपरागत मछुआ सदस्य बनेगें यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर विभाग संगठन के आग्रह पर ध्यान नहीं देता है तो संघ भविष्य में लोकतांत्रिक कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगा।

इस संबंध में हाई कोर्ट भी सरकार को निर्देश दे चुका है कि परंपरागत मछुआरों की सूची जारी की जाए। इसके लिए बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ ने वर्ष 2012 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। फैसले में हाईकोर्ट ने सरकार को परंपरागत मछुआरों की सूची जारी करने का आदेश दिया था। साथ में सहकारिता विभाग ने भी मत्स्य निदेशालय को निर्देश दिया था कि परंपरागत मछुआरों की सूची अविलम्ब जारी की जाए।
इस अवसर पर संघ के निदेशक नरेश कुमार सहनी, बजेन्द्र नाथ सिन्हा लाला सहनी, उपेन्द्र मुखिया, नेमो लाल सहनी, केशनाथ चौधरी, सत्यनारायण मुखिया, पंकज सहनी, गणेषी सहनी, तेजनारायण सहनी, रवीन्द्र सहनी, महेन्द्र सहनी, दिनेव्श्रर मुखिया, हरेराम सहनी, अमरदीप सहनी, अजेन्द्र कुमार, मिनाक्षी कुमारी,पदम्जा प्रियदर्शी, राम प्रमोद सहनी, पप्पु सिंह निषाद, मुन्ना चौधरी एवं विभिन्न जिले से आये प्रतिनिधि हरिवंश चौधरी, सिताराम चौधरी, प्रदीप कुमार, नन्दू चौधरी, बब्लू चौधरी, जमादार मुखिया, रणबीर सहनी, रामनाथ मल्लाछ, विजय चौधरी, बलिराम सहनी, शिवमुनी चौधरी, वैधना सहनी, धर्मेन्द्र कुमार, महेन्द्र सहनी, श्यामबिहारी चौधरी, रामबाबू चौधरी, रमेश चौधरी, शिवजी सहनी, धर्मनाथ सहनी, मनोज सहनी, रमेश मुखिया, गणौर मुखिया, गुड्डू सहनी, राम पुकार सहनी एवं लाल देव सहनी मौजूद थे ।

 

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